Gurukul ,the home of the Acharya where the pupils resided and learned the nuances of a balanced life…
SSCDA has taken an initiative of transmitting the true essence of Kathak in Sanskar Gurukul where students are resident to the place and learn Kathak free of cost as the relationship between guru and Shishya is sacred.
Apart from Kathak, students also embark a journey of disciplined and cultured life.Sanskar Gurukul objective revolves around imparting learning to students which takes them to the path of humanity,love and passion.
The teaching methodology in Sanskar Gurukul is such designed that it enhances the overall personality of the student thereby boosting there confidence, wisdom and mindfulness which is utmost important in even today’s world to face the challenges and embrace the opportunities life offers.
Here the students perform there daily activities themselves, they cook there own food and give time to the cleanliness of the surroundings. With all these activities they gain self awareness and can cope up with any challenges of life.
They also are inculcated with Vedic Mantras and their importance in our lives.
Sanskar Gurukul is a step towards taking our youth to the roots of India and making them good citizens.
मेरा नाम शिवांगी कुमारी है। मूल रूप से मैं बोकारो, (झारखंड) की रहने वाली हूँ। शुभ संस्कार क्रिएटिव डांस अकैडमी से मैं लगभग दस वर्षों से जुड़ी हूँ। यहाँ पर कथक गुरु, शालिनी मैम से नि: शुल्क कथक की शिक्षा ले रही हूँ। नृत्य सीखने के साथ साथ शुभ संस्कार गुरुकुल में अपनी भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपराओं को भी सीखने का मौका मिल रहा है। यहाँ मैं प्रतिदिन एक अच्छी दिनचर्या का पालन करके शारीरिक और मानसिक व्याधियों से स्वयं को दूर रख पा रही हूँ। कोरोना काल में पिताजी का निधन हो जाने से परिवार की अर्थव्यवस्था खराब हो गई। बहुत ही सारी परेशानियों के कारण मैं नकारात्मक से घिरी रहने लगी जिससे मेरे स्वस्थ पर बुरा असर पड़ा और मैं धीरे धीरे कमजोर होने लगी। फिर एक दिन मुझे मैम का कॉल आया और उन्होंने मुझे हिम्मत देते हुए फिर से क्लास शुरू करने को कहा। और जब मैं अपनी नृत्य की शिक्षा फिर से शुरू की तो मैं स्वयं को इन परेशानियों से दूर रखने में और स्वस्थ रखने में सक्षम हुई। यहाँ के वातावरण से मुझे मानसिक बल तो मिला ही साथ ही छोटे बच्चों को नृत्य की शिक्षा देकर मुझे नई अनुभूतियाँ मिली और यह मेरे लिये आय का एक साधन भी है जिससे मैं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करके अपनी जिम्मेदारियों निभा पा रही हूँ। यहाँ के सकारात्मक वातावरण में नृत्य और नटराज की पूजा करके मेरा यह जीवन सफल प्रतीत होता है। अपनी संस्कृति और परंपरा को जानकर और उसे आने वाली पीढ़ियों को बताकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। इस सुवसर को देने के लिए मैं गुरु शालिनी चतुर्वेदी मैम को और शुभ संस्कार के सभी सदस्यों को धन्यवाद करती हूँ।
मेरा नाम सनातन सहिस है। मेरी बेटी का नाम संतोषी सहिस है। मेरी बेटी शुभ संस्कार क्रिएटिव डांस ऐकडमी में लगभग सात सालों से कथक नृत्य की शिक्षा प्राप्त कर रही है। यह ऐकडमी बच्चों को नृत्य के साथ अच्छे संस्कार भी सिखाते हैं। इस ऐकडमी की संचालक श्रीमति शालिनी चतुर्वेदी जी बहुत ही मधु भाषी और मिलनसार स्वभाव की हैं। वह बच्चों को बहुत ही अच्छे और सरल तरीकों से नृत्य सिखाती हैं। मैम बच्चों के साथ साथ अभिभावक से भी अच्छे से पेश आती हैं। मेरी बेटी पहले से काफ़ी बेहतर नृत्य कर रही है। मेरी बेटी की भी पढ़ाई में भी इससे बहुत ज़्यादा मदद मिली है। मुझे कभी भी फ़ीसके लिए दबाव नहीं दिया जाता है। मुझसे जितना संभव हो पाता है उतना करता हूँ। मेरी बेटी का नृत्य देख कर मुझे ऐसा महसूस होता है कि इस डांस ऐकडमी में इसका दाख़िला कराने का मेरा निर्णय बहुत सही था। और आने वाले समय में मैं भी चाहूँगा की मेरी बेटी अपना जीवन में नृत्य को बरक़रार रखे।
मेरा नाम रश्मि वंदना मिंज है। मैं आदिवासी समुदाय से हूं। मैं मूल रूप से इटकी गांव रानीखतंगा की रहने वाली हूं। मैं अभी सरना टोली कडरू डोरंडा में रहती हूं। मैं शुभ संस्कार गुरुकुल में 10 वर्ष से जुड़ी हुई हूं और कथक शिक्षा ग्रहण कर रही हूं साथ ही फैकल्टी के रूप में काम भी कर रही हूं। मुझे शुभ संस्कार गुरुकुल से जुड़कर मानसिक और शारीरिक ऊर्जा मिलती है। मैं अपने कला के माध्यम से झारखंड और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में योगदान दे रही हूं।
मै रॉबिन प्रीति डुंगडुंग सिमडेगा जिला के कोलेबिरा प्रखंड की निवासी हूँ। शुभ संस्कार गुरुकुल की एक विद्यार्थी हूँ और फैकल्टी मेंबर भी हूँ। शुभ संस्कार गुरुकुल का पहला गुरुकुल है जहाँ इस गुरुकुल से जुड़े विद्यार्थी को भारतीय संस्कृति और प्राचीन कला की महत्ता से अवगत कराती है और जीवन को उसमें ढालने में मदद कर रही है। इस आधुनिक डिजिटल दुनिया के रहन - सहन, खान - पान से हमारा जीवन बहुतायत में परिवर्तित हुआ है और जो हम प्राकृतिक रूप से पायें जाने वाले जड़ी बूटी, विभिन्न औषधिया एवं पौष्टिक गुणकारी सादगी जीवन से काफी दूर हो गए है। इन सब की पूर्ति मुझे शुभ संस्कार गुरुकुल में हो रही है। जिसके कारण ऑफिस के दिन भर का काम को फुर्तीला से करने की क्षमता बढ़ गयी है, साथ ही साथ पढ़ाई और कथक में भी आगे बढ़ रही हूँ। मैं श्री गुरु श्री .शालिनी को धन्यवाद देती हूँ चूँकि उन्होंने इस गुरुकुल के माध्यम से हम युवाओं के लिए अच्छी दिशा प्रदान करने की पहल है।
My name is Manisha Hembrom. I am from Chaibasa. I belong to the “Ho” tribe of Jharkhand, which is the fourth most numerous Scheduled tribe in Jharkhand after the Santhals, Kurukhs, and Mundas. Over 90% of the Ho people practice the indigenous religion Sarnaism. The essence of the Sarna faith revolves around Nature worship.
I, Manisha Hembrom, am the first of my tribe to choose and learn Kathak. Being a tribal girl, I have felt that there is less awareness among my people about the scope of a career in the performing arts.
Before I joined Shaleena Mam, I was not sure if I wanted to learn dance or Kathak. Then I began to learn Kathak as a hobby, but later I got to know that this is the most creative way of educating people about their culture and diversifying the presence of the unknown. Shaleena Mam encouraged me to take Kathak as a profession and taught me to balance my life with it.
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